संजीव मेहता । लोकसभा चुनाव के लिए वोटिंग का पहला दौर शुरू हो चुका है और पहले राउंड के चुनाव में वोटिंग का सिलसिला शुरू हो जाएगा लेकिन बात करें चुनाव प्रचार की तो इस बार पहले जैसी बात देखने को नहीं मिल रही और ना ही 2019 और 2014 वाले चुनाव की तरह चुनावी शोर कहीं नजर नहीं आया कहीं यह वही बात तो नहीं की अरे भाई इतनी शांति क्यों है कहीं तूफान से पहले की शांति तो नहीं। कुछ इस तरह के सवाल ही राजनीतिक गलियारों में घूम रहे हैं।पहले यह धारणा थी कि लोगो मे चुनाव को लेकर ज्यादा उत्साह देखा जाता है तो इसका मतलब सत्ता पक्ष में लहर है।अगर मतदान को लेकर लोगो मे उत्साह नही तो राजनीतिक माहिर समझते है कि यह सरकार के खिलाफ जाता है।

आखिर, हर बार की तरह इस बार चुनाव क्यों नहीं उठा। क्यों चुनावी पारे ने उछाल नहीं भरी। यानी, स्वाभाविक रूप से हर किसी की जुबां पर यह विषय चर्चा के केंद्र में है।


इस सबके बावजूद चुनावी पारा उस हिसाब से नहीं चढ़ा, जैसा पूर्व के चुनावों में चढ़ता था। इसे लेकर सबके अपने-अपने दावे हैं। कुछ लोग इसे बदलाव के तौर पर देख रहे हैं। उनका कहना है कि चुनाव प्रचार अभियान के तौर तरीकों को लेकर अब सोच बदल रही है। मतदाता परिपक्व हो चुका है।

अगर चुनाव में कही शोर दिख रहा है तो वह केवल मेन स्ट्रीम मीडिया में ही दिख रहा।वह भी एक ही पार्टी की बात कर रहा है।अगर चुनावी ओपीनियन पोल की बात करे तो वह राजस्थान, छत्तीसगढ़ व मध्य प्रदेश में मुकाबला कड़ा ओर राजस्थान व छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बनने के दावे किए जा रहे थे लेकिन हुआ इससे उल्टा । इससे पहले भी कर्नाटक, हिमाचल,तेलगाना में ओपीनियन पोल में कड़ा मुकाबला बताया जा रहा था।लेकिन हुआ उल्टा पुल्टा ।अब मतदाता जागरूक हो चुका है कोई मन की बात नही बताता ।

लोग मंहगाई बेरोजगारी,भ्रष्टाचार,से परेशान तो है।लेकिन वोट राम मंदिर,CAA.NRC,370 हटाने,3 तलाक राष्ट्रवाद पर वोट करेगा यह कोई नही जानता, केवल मतदाता ही जनता है।

मतदाता दलों, प्रत्याशियों को अपनी कसौटी पर परखता है। दूसरी तरफ कुछ लोग यह चिंता जताते हैं कि इस बार जैसा परिदृश्य दिखा है, उसका मतदान पर असर न पड़े।

हर मतदाता,प्रत्याशी,नेता,कार्यकरता सभी अपने अपने हिसाब से गुना भाग में लगा हुआ है । लेकिन यह तो 4 जून को ही मतगणना के बाद पता चलेगा किसका हिसाब सही बैठा ।