हरिद्वार,संजीव मेहता।पतंजलि आयुर्वेद महाविद्यालय के तत्वावधान में आयोजित सम्मेलन ‘सौमित्रेयनिदानम्’ का समापन

सौमित्रेयनिदानम् शास्त्रीय शैली में लिखा प्रमाणिक ग्रंथ : आचार्य जी

2000 वर्ष पूर्व के आयुर्वेद और वर्तमान समय के आयुर्वेद की कड़ी को जोड़ने का कार्य ‘सौमित्रेयनिदानम्’ के माध्यम से किया गया है : आचार्य जी

हरिद्वार, 08 अगस्त। पतंजलि आयुर्वेद महाविद्यालय के तत्वावधान में आयोजित दो दिवसीय सम्मेलन ‘सौमित्रेयनिदानम्’ का समापन पतंजलि विश्वविद्यालय के सभागार में सम्पन्न हुआ। सम्मेलन के प्रथम सत्र में आचार्य बालकृष्ण जी ने कहा कि आयुर्वेद शाश्वत है, अनादि है किंतु लगभग 2000 वर्ष पूर्व आयुर्वेद काल, समय, स्थिति के कारण पिछड़ गया था। पिछले 2000 वर्ष के पूर्व के आयुर्वेद और वर्तमान समय के आयुर्वेद की कड़ी को जोड़ने का कार्य ‘सौमित्रेयनिदानम्’ के माध्यम से किया गया है और हम गौरवशाली हैं कि इस कार्य में हम सहभागी बने हैं। सौमित्रेयनिदानम् शास्त्रीय शैली में लिखा प्रमाणिक ग्रंथ है।
आचार्य जी ने कहा कि आयुर्वेद सर्वाधिक प्राचीनतम चिकित्सा विधा है किंतु यह सिद्ध करने के लिए दुनिया की सभी विधाओं पर अनुसंधान करने की आवश्यकता है।

आयुर्वेद में हम मुख्य रूप से चरक, सुश्रुत व धनवंतरि आदि महर्षियों को प्रणेता मानते हैं, इसी प्रकार अन्य चिकित्सा पद्धतियों में भी कोई न कोई प्रणेता अवश्य रहा है। उनके समय, काल का अध्ययन कर तथ्य व प्रमाणों के आधार पर वैश्विक इतिहास को एक जगह रखकर हम सिद्ध कर पाएँगे कि वास्तव में आयुर्वेद ही सर्वाधिक प्राचीन, वैज्ञानिक व प्रामाणिक चिकित्सा पद्धति है। कथन से नहीं, शास्त्र से नहीं अपितु सम्पूर्ण विश्व के इतिहास से भी हम प्रामाणिक हैं इसका प्रमाण भी पतंजलि के माध्यम से ही सिद्ध होगा।
सम्मेलन के दूसरे सत्र में आई.एम.एस., बी.एच.यू., वाराणसी के आयुर्वेद संकाय में क्रियाशारीर विभाग के सहायक-प्राध्यापक वैद्य सुशील कुमार दूबे ने ‘आयुर्वेदिक नाड़ी परीक्षा और प्रकृति परीक्षा में निदान की भूमिका का उपयोग’ विषय पर व्याख्यान दिया।


तृतीय सत्र में अखिल भारतीय आयुर्वेद संस्थान, नई दिल्ली के सह-प्राध्यापक डॉ. संदीप तिवारी ने ‘रोग निदान और पैथोलॉजी प्रयोगशाला के क्षेत्र में कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग का लाभ उठाना’ विषय पर उद्बोधन दिया। ऋषिकुल परिसर, हरिद्वार, उत्तराखण्ड आयुर्वेद विश्वविद्यालय के रोग निदान एवं विकृति विज्ञान विभाग की विभागाध्यक्षा डॉ. रूबी रानी ने ‘क्रिया-काल की अवधारणा का पुनर्मूल्यांकन’ विषय पर विषद् चर्चा की।
आई.एम.एस. बी.एच.यू. वाराणसी के रोग निदान एवं विकृति विज्ञान विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ. अनुराग पाण्डेय ने ‘पुरुष बांझपन से संबंधित आयुर्जीनोमिक्स और सटीक चिकित्सा के सिद्धांत डब्ल्यूएसआर से सौमित्रेयनिदानम्’ विषय पर वक्तव्य दिया। आरोग्य लक्ष्मी आयुर्वेद केन्द्र, जयपुर के संस्थापक डॉ. श्रीकृष्ण खण्डेल ने ‘आयुर्वेद में रोगनिदानम्’ विषय पर ज्ञानवर्धन किया। दत्तामेघी आयुर्वेद महाविद्यालय एवं हॉस्पिटल, नागपुर के सहायक प्राध्यापक वैद्य माधव आष्टिकर ने ‘सौमित्रेयनिदानम् इति ग्रन्थस्य तन्त्रगुण-दोष युक्त्यात्मकमध्ययनम्’ विषय पर मार्गदर्शन दिया।
पैनल चर्चा में ‘आयुसंस्कृतम् – संस्कृत फॉर आयुर्वेदा’ विषय पर प्रो. (डॉ.) श्रीप्रसाद बावाडेकर, प्रो. विजयपाल शास्त्री, प्रो. एस. वेनूगोपालन, प्रो. महेश व्यास, डॉ. शशीरेखा एस.के., प्रो. बनमाली बिस्वाल, प्रो. सत्यपाल ने सभी का ज्ञानवर्धन किया।
देश भगत विश्वविद्यालय, पंजाब के कुलपति डॉ. अभिजीत एच. जोशी ने ‘आयुर्वेदोक्तव्याधिनिदानमपद्धति’ विषय के द्वारा आयुर्वेद के माध्यम से रोगों की निदान पद्धति पर प्रकाश डाला। ऋषिकुल परिसर, उत्तराखण्ड आयुर्वेद विश्वविद्यालय, हरिद्वार के रोग निदान एवं विकृति विज्ञान विभाग के प्रोफेसर डॉ. संजय कुमार सिंह ने ‘वर्तमान परिप्रेक्ष्य में आयुर्वेदिक निदान प्रक्रियाओं/तकनीकों की प्रासंगिकता’ विषय पर व्याख्यान दिया। पतंजलि आयुर्वेद कॉलेज की रोग निदान विभाग की विभागाध्यक्षा एवं सह-प्राध्यापिका डॉ. नेहा बरूआ ने ‘आयुर्वेदिक त्वचा विज्ञान में इंद्रलुप्त की अवधारणा: सौमित्रेयनिदानम् से अंतर्दृष्टि’ विषय पर विषद् चर्चा की।
कार्यक्रम के अंत में आचार्य बालकृष्ण जी ने कार्यक्रम में पधारे सभी विद्वान अतिथियों को स्मृतिचिन्ह भेंट कर सम्मानित किया। कार्यक्रम का सफल संचालन पतंजलि हर्बल रिसर्च डिविजन की प्रमुख- डॉ. वेदप्रिया आर्या ने किया।
कार्यक्रम में देश के विभिन्न राज्यों से पधारे आयुर्वेद के प्रकाण्ड विद्वान, पतंजलि आयुर्वेद कॉलेज व पतंजलि विश्वविद्यालय के शिक्षकगण, विद्यार्थीगण तथा शोधार्थियों ने ज्ञानवर्धन किया।