देहरादून/हरिद्वार:संजीव मेहता।उत्तराखंड की सियासत इन दिनों एक नए मोड पर है. प्रदेशभर में 8 दिनों से आवाज बुलंद कर रहे बेरोजगार युवाओं के आंदोलन ने आखिरकार सरकार को झुकने पर मजबूर कर दिया. 29 सितंबर का दिन उत्तराखंड की राजनीति और युवाओं के संघर्ष के इतिहास में दर्ज हो गया जब मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी अचानक धरना स्थल पहुंचे और बेरोजगार युवाओं की मांग मानते हुए सीबीआई जांच की घोषणा कर दी. यह फैसला जितना युवाओं के लिए जीत साबित हुआ, उतना ही राज्य के राजनीतिक गलियारों में श्रेय लेने की होड़ का कारण भी बन गया.

देहरादून के परेड ग्राउंड स्थित धरना स्थल पर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के पहुंचते ही युवाओं ने राहत की सांस ली. सीएम धामी के पेपर लीक प्रकरण की सीबीआई जांच के आश्वासन और छात्र पर दर्ज मुकदमा वापस लेने की घोषणा करते ही आंदोलन भी खत्म हो गया. इससे प्रदेशभर में उम्मीद की एक नई किरण भी जगी, लेकिन आंदोलन के समापन के कुछ ही मिनट बाद राजनीतिक मंचों पर श्रेय लेने वालों का सिलसिला शुरू हो गया. इससे सवाल उठ रहा है कि यह जीत युवाओं की है, या नेताओं की?

29 सितंबर को अचानक मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी धरनास्थल पर पहुंचे. उन्होंने युवाओं की पूरी बात सुनी और न केवल सहानुभूति जताई बल्कि, सार्वजनिक रूप से ऐलान किया कि अब इस पूरे मामले की जांच सीबीआई से कराई जाएगी. यह बयान आते ही धरनास्थल पर बैठे युवाओं के चेहरे खिल उठे.

सबसे पहले पूर्व मुख्यमंत्री और हरिद्वार से सांसद त्रिवेंद्र सिंह रावत के समर्थकों ने जश्न मनाना शुरू कर दिया. समर्थकों ने पटाखे फोड़े और मिठाइयां बांटी. साथ ही नारे लगाए ‘त्रिवेंद्र सिंह रावत जिंदाबाद’, ‘युवाओं के हितैषी सांसद जिंदाबाद’ के नारे लगे. उसमें खुद पूर्व सीएम त्रिवेंद्र रावत ने बयान भी जारी कर दिया. त्रिवेंद्र रावत ने खुद बयान दिया कि वो शुरू से ही युवाओं के साथ खड़े थे और सीबीआई जांच की मांग के पक्षधर रहे हैं. उन्होंने सीएम धामी को युवाओं की आवाज सुनने के लिए धन्यवाद भी दिया.