नई दिल्ली संजीव मेहता। बिहार में सीएम नीतीश कुमार ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है। बिहार के सीएम के इस्तीफे के साथ ही राज्य में 9 अगस्त 2022 से चला आ रहा राजद के साथ महागठबंधन से इस्तीफा दे दिया है। नीतीश की इस पलटी ने महागठबंधन के साथ ही लोकसभा चुनाव से पहले विपक्षी धड़े वाले इंडिया गठबंधन को भी बड़ा झटका दिया है। नीतीश कुमार ने एक बार फिर पलटी मार दी है। कभी बिहार में अपने सुशासन के लिए जाने जाने वाले नीतीश कुमार ने ‘सुशासन बाबू कहलाने से लेकर ‘पलटू कुमार’ यानी पाला बदलने वाले व्यक्ति के रूप में लंबा सफर तय किया है। इस दौरान सीएम नीतीश कुमार मुख्यमंत्री बनने के बाद चार बार पलटी मार चुके हैं।बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार हाल के दिनों में पलटीमार राजनीति का सबसे बड़ा चेहरा बन कर उभरे हैं ।


आरजेडी सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव ने नीतीश कुमार का नाम ही ‘पलटू चाचा’ रख दिया था. ‘पलटू चाचा’ के नाम से प्रचलित नीतीश कुमार एक बार फिर पलटी मारकर भाजपा के सहयोग से मुख्यमंत्री बन चुके है।
पहली पलटी: 17 साल का रिश्ता टूटा
नीतीश कुमार ने पहली बार 1994 में जनता दल से अलग होकर समता पार्टी बनाई थी। उस समय जॉर्ज फर्नानडीज नीतीश कुमार के साथ थे। 90 के दशक में ही नीतीश कुमार पहली बार बीजेपी के साथ आए थे। नीतीश कुमार ने 2005 में पहली बार बीजेपी के समर्थन से सरकार बनाई थी। लगभग 8 साल के बाद नीतीश कुमार ने पहली बार 2013 में पाला बदला था। उस समय उन्होंने भगवा पार्टी के साथ जेडीयू के 17 साल लंबे राजनीतिक गठबंधन को खत्म करने का फैसला किया था। उस समय नीतीश ने पीएम के रूप में नरेंद्र मोदी की उम्मीदवारी का विरोध जताया था। नीतीश कुमार बीजेपी की तरफ से नरेंद्र मोदी को पीएम पद के उम्मीदवार के रूप में घोषित किए जाने से नाखुश थे। नीतीश कुमार ने 2014 का लोकसभा चुनाव अकेले लड़ा। इस चुनाव के बाद नीतीश कुमार को केवल दो सीट मिली। जबकि 2009 के चुनावों में जेडीयू को 18 सीटों पर जीत हासिल हुई थी।

दूसरी पलटी: कांग्रेस-राजद से मिलाया था हाथ
2014 में, बीजेपी के प्रचंड बहुमत से चुनाव जीतने के बाद, कुमार ने जेडीयू की हार की जिम्मेदारी ली। उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया। इसके बाद उन्होंने जीतम राम मांझी को सीएम नियुक्त कर दिया। लालू यादव की राजद और कांग्रेस ने कुमार की जदयू का समर्थन किया और कुमार विधानसभा में बहुमत परीक्षण में सफल रहे। अंततः जदयू-कांग्रेस-राजद गठबंधन, महागठबंधन का गठन हुआ। गठबंधन ने कुमार को 2015 में राज्य चुनाव जीतने में मदद की। इससे लालू यादव के उत्तराधिकारी तेजस्वी यादव के लिए राह खुली। इसके बाद तेजस्वी यादव उप मुख्यमंत्री बने।
तीसरी पलटी : 2017 में फिर असंतुष्ट हुए नीतीश
गठबंधन में राजद के महत्व से असंतुष्ट कुमार 2016 में फिर से सुर्खियों में आये। उस समय नीतीश कुमार का झुकाव बीजेपी की नोटबंदी और जीएसटी संबंधी नीतियों की ओर दिखाई दिया। हालांकि कुमार के झुकाव का गठबंधन में शामिल दलों ने स्वागत नहीं किया। हालांकि, सीबीआई की लालू यादव और उनके रिश्तेदारों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले दर्ज करने के बाद उन्हें गठबंधन में बढ़त हासिल करने का एक और मौका मिला। कुमार ने गठबंधन से संपर्क किया और तेजस्वी यादव का इस्तीफा मांगा। तेजस्वी का सीबीआई की चार्जशीट में भी था। हालांकि, लालू ने इनकार कर दिया। इसके बाद नीतीश कुमार ने 2017 में फिर से पलटी मारी और बीजेपी से हाथ मिला लिया। इसके बाद वह फिर से मुख्यमंत्री बने। विधानसभा में बहुमत सीटों के साथ, बीजेपी ने जेडीयू के साथ गठबंधन में बढ़त हासिल की। कुमार को चौथी बार सीएम चुना गया। उन्होंने बीजेपी की तरफ से चुने गए दो उपमुख्यमंत्रियों- तारकिशोर प्रसाद और रेनू देवी सहित 14 मंत्रियों की परिषद का नेतृत्व किया। यह देखते हुए कि भगवा पार्टी ने तब बहुमत सीटें हासिल की थीं।

चौथी पलटी : 2022 में फिर असहज हो गए नीतीश

गठबंधन के एक साल पूरे होने पर, नीतीश कुमार ने बिहार में दो डिप्टी सीएम की नियुक्ति पर असंतोष के बीच बीजेपी के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर पर आपत्ति जताई थी। कई मतभेदों के बाद, कुमार ने अगस्त 2022 में बीजेपी से नाता तोड़ लिया। 9 अगस्त 2022 को नीतीश कुमार ने कहा था कि बीजेपी हमारा का अस्तित्व समाप्त करना चाहती है। बीजेपी हमारी पार्टी को खत्म करना चाहती है। इस बात के साथ उन्होंने एनडीए गठबंधन छोड़ा था। उस समय राजद ने उनका स्वागत किया। इसके बाद नीतीश कुमार ने फिर पलटी मारते हुए सीएम पद बरकरार रखा।

बिहार में क्या है मौजूदा स्थिति
वर्तमान में, बिहार के 243 निर्वाचन क्षेत्रों में से, राजद के पास 79 सीटें हैं। वहीं, जदयू के पास 45 और भाजपा के पास 78 विधायक हैं। नीतीश कुमार अब बीजेपी के साथ गठबंधन करके सरकार बनाएंगे। इसके बाद फिर से सीएम बनेंगे। 2010 के बिहार चुनाव में जेडीयू को 115 सीट मिली थी। वहीं, 2015 में जेडीयू को 71 सीट मिली। इसके बाद 2020 में घटकर सिर्फ 43 सीटों तक सिमट गए। इससे साफ है कि विधानसभा में जेडीयू की ताकत कम हो रही है। ऐसे में अब यह देखना बाकी है कि 2024 के लोकसभा चुनाव के दौरान बिहार और कुमार के आसपास की राजनीति किस तरह करवट बदलती है।