ऋषिकेश संजीव मेहता।भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) देश की न्यायपालिका के सर्वोच्च पद पर होते हैं — वे न केवल सुप्रीम कोर्ट का नेतृत्व करते हैं बल्कि पूरे न्याय-तंत्र की गरिमा और स्वतंत्रता के प्रतीक हैं।
अगर उन पर कोई राजनीतिक, शारीरिक या वैचारिक हमला किया जाता है, तो यह सिर्फ व्यक्ति पर नहीं बल्कि पूरी न्यायपालिका की स्वतंत्रता और संविधान की आत्मा पर हमला माना जाता है।


🔹 “हमारी न्यायपालिका की गरिमा और संविधान की भावना पर हमला”

इस पंक्ति का अर्थ है कि भारत का संविधान तीन स्तंभों — विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका — पर टिका हुआ है।
यदि न्यायपालिका की गरिमा पर हमला होता है, तो यह संविधान में निहित न्याय, समानता और स्वतंत्रता के मूल सिद्धांतों को चोट पहुँचाने जैसा है।
इसलिए, ऐसा कोई भी आचरण या बयान जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता को कमजोर करे, वह लोकतंत्र के लिए खतरनाक है।


🔹 “इस तरह की नफरत का हमारे देश में कोई स्थान नहीं है”

यह वाक्य शांति और संवैधानिक मर्यादा की अपील करता है।
भारत विविधता, सहिष्णुता और परस्पर सम्मान के मूल्यों पर खड़ा है।
इसलिए किसी भी संस्था या व्यक्ति के खिलाफ हिंसा या नफरत फैलाना भारत की मूल भावना के विपरीत है।


🔹 “प्रधानमंत्री मोदी और कानून मंत्री की चुप्पी आश्चर्यजनक है”

यह भाग एक राजनीतिक टिप्पणी है।
जब देश के सर्वोच्च न्यायिक पदाधिकारी पर हमला होता है, तो अपेक्षा की जाती है कि प्रधानमंत्री और कानून मंत्री तत्काल इसकी निंदा करें — ताकि यह संदेश जाए कि सरकार न्यायपालिका की स्वतंत्रता और सम्मान की रक्षा के लिए प्रतिबद्ध है।
लेकिन यदि वे चुप रहते हैं, तो यह नैतिक और संवैधानिक दृष्टि से प्रश्न उठाने योग्य स्थिति बन जाती है।
इसी बात पर ध्रुव कुमार “शैंकी” ने “आश्चर्यजनक” शब्द का प्रयोग किया है।