देहरादून:संजीव मेहता। उत्तराखंड को यूं ही देवी नहीं कहा जाता है, यहां कण-कण में देवी देवताओं का वास माना जाता है. लोग देश-विदेश से यहां देवत्व का अहसान करने पहुंचते हैं. आज हम आपको ऐसे ही देवी धाम के बारे में बताने जा रहे हैं. मान्यता है कि यहां मां भगवती दिन में तीन बार अपना स्वरूप बदलती है. इस मंदिर में लोगों की अटूट आस्था है और कई प्रांतों के लोग बड़ी तादाद में यहां मां के दर्शन करने पहुंचते हैं.

मां भगवती का ये धाम गढ़वाल मंडल के श्रीनगर क्षेत्र में है. जिसे प्राचीन सिद्धपीठ ‘धारी देवी’ मंदिर के नाम से जाना जाता है. मंदिर में मां की ‘दक्षिणी काली माता’ के रूप में पूजन होता है. पौराणिक मान्यता के अनुसार मां धारी देवी चारों धाम की रक्षा करती हैं और मां यहां रोजाना तीन स्वरूप बदलती है. धारी देवी सुबह सुबह कन्या के रूप में तो दोपहर के समय युवती के रूप में और शाम को वृद्धा का रूप धारण कर श्रद्धालुओं को दर्शन देती हैं. मां के इन स्वरूपों के कारण की लोगों की मंदिर के प्रति अगाध श्रद्धा है और लोग बड़ी संख्या में मंदिर के दर्शन के लिए पहुंचते हैं.

पौरागणिक मान्यता के अनुसार गुप्तकाशी के समीप कालीमठ के कालीशिला से मां का अवतरण हुआ. मां जब असुरों का वध करते हुए यहां पहुंची तो भगवान शिव ने मां काली के रौद्र रूप को शांत किया था. जिस कारण मां को कल्याणी के नाम से भी जाना जाता है. दूसरी पौराणिक कथा के अनुसार आदिगुरु शंकराचार्य जब हिमालय की ओर जा रहे थे, इसी जगह पर एक सूरजकुंड हुआ करता था, जहां पर सूर्य भगवान के सुबह से लेकर शाम तक दर्शन होते थे. आदिगुरु शंकराचार्य भगवान शिव के उपासक थे और उनका उनके सिवा किसी पर विश्वास नहीं था. कहा जाता है कि आदिगुरु शंकराचार्य को मां ने संध्या काल में वृद्धा स्वरूप में जलपान कराया. जिसके बाद वो मां शक्ति के उपासक हो गए.