हरिद्वार,वौइस् ऑफ इंडिया। श्रीरामलीला समिति ज्वालापुर लक्कड़हारान की रामलीला में राम-लक्ष्मण की जोड़ी के अभिनय को दो जुड़वां भाई सहेज रहे हैं। वह रंगमंच पर ऐसा रंग जमाते हैं कि उनके संवाद-अभिनय को सुनने-देखने के लिए लोग पूरी रात पंडाल में बैठे रह सकते हैं। एक-दूसरे के प्रतिरूप दिखने वाले ये दोनों भाई हैं एक बड़े व्यावसायिक घराने के दीपांकर-शुभांकर।
रामलीला समिति से दोनों भाई 26 साल पहले जुड़े थे। शुरुआत में इन्होंने अलग-अलग किरदार निभाए। फिर भरत-शत्रुघ्न के रूप में इन्हें एक स्थायित्व मिला। उन किरदारों में जितना कुछ संवाद बोलने का अवसर मिला, उसे दोनों भाइयों ने खूब भुनाया। भरत-शत्रुघ्न का ननिहाल से वापस आना और चित्रकूट जाकर भरत द्वारा राम की चरण-पादुका लेने के बीच के किरदारों को देखने भीड़ उमड़ने लगी। इस बात को रामलीला समिति ने समझा और दोनों भाइयों को राम-लक्ष्मण का किरदार दे दिया गया।

मंचन से एक महीना पहले करने लगते हैं भूमि-शयन
ज्वालापुर निवासी पंडित बृज मोहन च्रकपाणि के घर जुड़वां पुत्रों ने जन्म लिया। इनके नाम रखे गए- दीपांकर और शुभांकर। दोनों भाई पढ़ाई के साथ पिता और बड़े भाई सिद्धार्थ चक्रपाणि के साथ धर्मकाज में लग गए। दोनों भाई वर्तमान में मध्य शहर में रानीपुर मोड़ के पास एक बड़ा प्रतिष्ठान चलाते हैं। रामलीला शुरू होने के एक महीना पहले ये अपना प्रतिष्ठान कामगारों के सहारे छोड़ देते हैं। इस दौरान ये जमीन पर सोते हैं और केवल घर का खाना खाते हैं। फिर रामलीला की मंचन संपन्न होने के बाद दोनों भाई अपने कामकाज में जुट जाते है।


117 वर्ष पुरानी रामलीला समिति आज भी अनवर
दीपांकर और शुभांकर बताते हैं कि लक्कड़हारान मोहल्ले की रामलीला समिति 117 वर्ष पुरानी है। ब्रिटिशकाल में इसे राम नाटक के रूप में जाना जाता था। लगभग 72 वर्ष पूर्व इस कमेटी के मंचन को लेकर विवाद हुआ तो इसे सिखौला परिवार ने जमीन देकर संचालित करने में पूर्ण सहयोग दिया। इसी तरह स्थानीय हिंदू समाज के लोगों ने बच्चों को अभिनय कला में पारंगत किया गया। इन सभी प्रयासों में तत्कालीन समिति के पदाधिकारियों की अहम भूमिका रही। कमेटी से जुड़े वर्तमान अध्यक्ष रामजी सरदार, मंत्री प्रदीप पत्थर वाले, अमित शास्त्री आदि का पूरा प्रयास है कि इसे संरक्षित किया जाए। इस संकल्प को सहेजे रखने में दीपांकर और शुभांकर का अहम योगदान है।

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